मनहूस कोठी भाग _ 7

कहानी _ **मनहूस कोठी**

भाग_ 7

लेखक_ श्याम कुंवर भारती

वहा का माहौल पल पल बदल रहा था।दुर्जन की पत्नी की आत्मा  के आने के बाद सभी भाऊक हो उठे ।वो तीनो आत्माओं से स्नेह रखती थी ।लेकिन दुर्जन से बेहद नफरत करती थी।
दुर्जन जिंदा रहते हुए कभी भी अपनी पत्नी पत्नी को प्यार दुलार और सम्मान नही दिया ।बल्कि उसी की आंखों के सामने वो अलग अलग औरतों के साथ अय्यासिया करता था।हद तो जब हो गई जिस लड़की को वो अपनी बहु बनाने के लिए लाया था उसे अपनी रखैल बनाना चाहता था।
इसी बात को लेकर उसकी पत्नी का संयम और धैर्य टूट गया था।
आग को जवाला के बीच दुष्ट आत्मा दर्जन की चिघाड़ सुनकर सबके रोंगटे खड़े हो रहे थे।जब बर्दास्त नही हुआ तो उसके बेटे भानु ने बाबा से कहा _ बाबा चाहे जो भी हो ये मेरे पिता हैं।इन्होंने हमारी मां ,मेरे साथ और प्रभा के परिवार के साथ जो किया वो बहुत ही शर्मनाक , गैर कानूनी , दरिंदगी भरी और वीभत्स है लेकिन मुझसे इनका तड़पना देखा नही जा रहा है।इनको राहत दीजिए।
उसकी बात सुनकर बाबा ने चिल्लाते हुए उस दुर्जन की आत्मा से कहा _ देख दुष्ट  और बेरहम आत्मा दुर्जन  तेरे दिल में तो किसी के लिए कोई दया मया नही है लेकिन तेरे बेटे को तुझपर दया आ रही है।चल तुझे अभी इस अग्नि से राहत देता हूं । इतना कहकर बाबा ने थोड़ी भभूत लेकर मंत्र पढ़ा और उसपर फेंक दिया ।भभूत पड़ते ही आग बुझ गई ।दुर्जन ने राहत की सांस लिया।
अब कोई सैतानी हरकत मत करना दुर्जन नही तो मैं शरीफ आत्माओं के लिए शरीफ और शैतान आत्माओं के लिए उससे भी बड़ा शैतान हूं ।
उसकी पत्नी ने कहा _ बाबा इस पर कोई रहम मत कीजिए ।इसने जीते जी मेरी जिंदगी नरक बना रखा था ।अब मरने के बाद भी मुझ पर जुल्म करता है।मुझे बंधक बना कर रखा था। प्रभा और इसकी मां बहन की में मदद ना करूं इसलिए ये शैतान मुझे कही आने जाने नही देता था।
बाबा ने कहा _ अब से तुम आजाद हो ।अब तुम्हे कोई नही सताएगा ।पहले ये बताओ क्या तुम अपने बेटे की शादी  एक आत्मा के रूप में प्रभा से करने को तैयार हो ।
मैं तो शुरू से इस सुंदर और प्यारी गुड़िया को अपनी बहु बनाना चाहती थी बाबा ।मुझे अब भी कोई ऐतराज नहीं है ।भानु की मां की आत्मा ने प्रभा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
तो ठीक है । बाबा ने कहा और फिर दुर्जन से पूछा _ अब बोलो दुर्जन तुम क्या बोलते हो ।
मैं अब भी वही कहता हूं अगर किसी ने मेरी रखैल से विवाह किया मैं उसकी जान ले लूंगा ।चाहे वो मेरा बेटा ही क्यों न हो ।इतना कहकर वो फिर अपने बेटे भानु की तरफ लपका लेकिन तभी बाबा ने उसपर भभूत फेंका दुर्जन तुरंत धुंआ बन गया। बाबा ने उसे अपनी अभिमंत्रित बोतल में डाल कर बंद कर दिया ।
बाबा ने उसे अपनी एक झोली में डालकर बांध दिया ।
फिर उन्होंने राम जी ,भानु  और प्रभा के पिता से कहा _ आप तीनो को इन आत्माओं की हड्डियां खोजनी होगी ।चाहे जो भी  मिले हाथ ,पैर या खोपड़ी उसे लाकर कल श्मशान घाट में दुर्जन की हड्डियों को जलाना होगा।

प्रभा ने कहा _ बाबा अगर मेरी भी हड्डियां जला देंगे तो मैं भानु से विवाह कैसे करूंगी ।मेरी आत्मा प्रेत योनि से मुक्त हो जायेगी ।
उसकी छोटी बहन नैना ने कहा _ बाबा  हम सब अपनी दीदी का विवाह भानु जीजा से होते देखना चाहते है इसलिए हम तीनो को भी हड्डियां मत जलाना। विवाह होने के बाद भले जला देना ।
प्रभा की मां ने कहा _ बाबा नैना ठीक कह रही है ।दूर्जन की पत्नी लीलावती ने भी सबका समर्थन किया ।
बाबा ने कहा _ सिर्फ दुर्जन की हड्डियों को जलाया जायेगा । औरतों को हड्डियों को दफनाया जाएगा।
वैसे तुम सबकी इक्षा है तो ठीक है विवाह तक  तुम सब रह सकती हो r।उसके बाद केवल प्रभा को छोड़कर सबको प्रेत योनी से मुक्त कर दिया जायेगा ।
फिर बाबा ने भानु और मंगल राम प्रभा के पिता से कहा _ तुम दोनो जली हुई हड्डियों की राख को गंगा में प्रवाहित कर देना ।फिर गया , प्रयागराज या बनारस में इन सबका पिंडदान करा देना ।ये सब काम तुम दोनो को पहले ही करना चाहिए था ।इससे इन सबकी आत्मा को शांति मिल गई होती और ये सब प्रेत योनी में इस कोठी में नही भटक रही होती ।
पिंडदान कराने के बाद तुम दोनो इसी कोठी में इनके नाम पर पूजा पाठ और हवन कराना।उसके बाद फिर भोज  करवाना । ब्राह्मणों अपने हित नाथ रिश्तेदारों और गरीबों  को भोजन कराकर अपनी शक्ति अनुसार दान दे देना।
इससे इनकी आत्मा को बहुत शांति मिलेगी और तुम दोनो को इसका फल भी मिलेगा ।घर में सुख शांति रहेगी । अन्न धन की प्राप्ति होगी । क्योंकि उसके बाद ये सभी पित्तर बन जायेंगे ।और तुम सबकी रक्षा और मदद करेंगे।
अपने कर्मो के अनुसार इनको जो भी भोगना होगा फल भोग कर फिर किसी योनि में जन्म ले लेंगे ।हो सकता है फिर तुम्हारे ही घर में जन्म ले ले।
बाबा ने राम जी से कहा _ अब इस कोठी से सभी प्रेत बाधाएं दूर हो जाएंगी ।तुम भी इस कोठी में नौ दिवसीय श्रीमद भागवत कथा करा देना ताकि इस कोठी में सभी नकरात्मक शक्तियों का प्रभाव खत्म हो जाए और सकारात्मक ऊर्जा के साथ देवीय शक्तियों को वास हो । कथा के बाद तुम भी दान पुण्य कर देना।हर पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की कथा कराते रहना कम से कम एक साल तक ।उसके बाद भी अगर कराते रहोगे तो उसका फल तुमको मिलता रहेगा ।दो साल तक दो दो दो बार सतचंडी पाठ करवाकर पूजा हवन नौ कन्या भोजन और दान करते रहना ।
क्योंकि काफी लंबे समय समय से ये कोठी निर्जन और सुनसान और खाली पड़ी हुई थी ।कभी कोई पूजा पाठ हवन और दिया बाती नही हुई।इसलिए  इस कोठी में आत्माओं का वास यानी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ गया था।
नकारात्मक ऊर्जा हमेशा खाली और सुनसान घरों में ही प्रभाव डालती है ।जहा अपने अपने धर्म के हिसाब से पूजा पाठ और दिया बाती न हो ।इसलिए हमेशा ध्यान रहे काफी लंबे समय तक कोई भी घर खाली नही छोड़ना चाहिए।अगर खाली रखना मजबूरी हो तो वहा दिया बाती जलाने का जरूर इंतजाम करना चाहिए।
बाबा ने राम जी को समझते हुए कहा।
राम जी पहले उनकी पत्नी और बहुओं ने कहा _ बाबा हम सब समझ गए ।आपने जैसा कहा है हम सब वैसा ही करेंगे ।
भानु ने भी कहा _ हम दोनो भी वही करेंगे जो आपने कहा । क्योंकि अब तक किसी ने हमे बताया नही । मेरे माता पिता दोनो मर गए । तीसरा कौन बताता ।घर में अब मैं बिल्कुल अकेला हूं ।मेरा साथ मंगल चाचा देते है।

तभी जोरदार आवाज के साथ बाबा की झोली में रखी हुई बोतल फूट गई और उसमे से भयानक अट्टहास करता हुआ दुर्जन की आत्मा निकली और बाबा को गिराकर उनकी छाती पर चढ़ बैठा ।मैने कहा था न मेरा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता।

अचानक बहुत ही भयानक और डरवाना माहौल पैदा हो गया था। सभी लोग भय से चीखने चिल्लाने लगे।पिशाच फिर से मुक्त हो गया था ।उसने अगर बाबा को ही मार दिया तो फिर उनकी रक्षा कौन करेगा ।
अभी लग रहा था अब सब कुछ ठीक हो गया था लेकिन  ये तो और भी खतरनाक  हो गया है।
तभी बाबा के दोनो चेलों ने मंत्र पढ़कर उस पिशाच पर फेंका ।उसकी पकड़ थोड़ी ढीली पड़ी ।इतने में चारो आत्माओं ने दुर्जन की गर्दन पकड़कर दूर फेंक दिया ।
बाबा फुर्ती से हांफते हुए उठे । वे बहुत क्रोध में थे ।उन्होंने तुरंत आंटा निकाला और उसमे फुर्ती से पानी मिला कर सान दिया ।उसका आदमी जैसा आकार का बना दिया और लोहे की किल निकालकर उसमे गाड़ना शुरू किया।जैसे ही कील गड़ती वो पिशाच गला फाड़कर चिघाड़ता था। इस तरह बाबा ने उस पुतले में दस किले घुसा दीया।
क्रोध में चिल्लाते हुए बोले बाबा _ तुम कुत्ते की पूंछ हो कभी नही सुधरोगे।तो लो भुगतो ।वो पिशाच दर्द से तड़पता और चिल्लाता रहा ।उसकी पत्नी की आत्मा ने अपने बेटे भानु से कहा_ देखा बेटा जिस पिता और तुम दया दिखा रहा था तुझ पर हीं जानलेवा हमला किया अब बाबा को ही मारने जा रहा था।जब की बाबा इसको मुक्त कराना चाहते थे।
बाबा ने कहा _ मैं एक काली मां का भक्त हूं ।मैं एक सात्विक तांत्रिक हूं । मैं किसी भी जीव की बलि नही चढ़ाता।इसलिए इस पिशाच को भी सिर्फ काबू में कर रहा था ।लेकिन अब   औघड़ आकर इसको ठीक करेगा ।जो बली चढ़ाता है ।मुर्दा का मांस मदिरा   खाता पीता है और शैतान की पूजा करता है।
इतना कहकर बाबा ने उसी रात में औघड़ भैरव नाथ को फोन कर सारी तैयारी के साथ उस कोठी का पता बताकर आने को कहा ।

करीब आधे घंटे तक सभी डरे सहमे बैठे रहे ।पता नही कब ये पिशाच  फिर बाबा के मंत्र से मुक्त हो जाए।इतनी जोर लगाने के बाद भी ये बाबा की पकड़ से निकल जाता था।सच में बड़ा ही भयानक पिशाच था वो ।
थोड़ी ही देर में औघड भैरव नाथ अपने पांच चेलो के साथ पहुंचा।फिर हवन समर्गी तैयार हुई ।उसने कुछ पूजा पाठ किया ।फिर हवन किया ।लेकिन इस हवन से नदी दुर्गंध आ रही थी ।सबने अपनी अपनी नाक बंद कर लिया।
तभी एक जोरदार आवाज के साथ हवन की ज्वाला भभकी और एक भयानक पिशाच वहा प्रकट हों गया।
भैरव ने कहा _ तुम अभी उस पिशाच को जितना मार सकते हो मारो और उसका कचूमर निकाल दो ।उसने दुर्जन की तरफ इशारा करके कहा।
फिर बाबा से कहा _ कालीचरण आ पुतले से सभी किले निकाल दो अब उसकी जरूरत नहीं है । बाबा ने निकाल दिया ।
मेरा पिशाच उसका भी बाप है तुम देखते जाओ ।
वही हुआ । भैरव के पिशाच ने दुर्जन की गर्दन पकड़कर पटकना शुरू कर दिया ।वो बड़ी भयंकर आवाज में चिल्लाता था।
पूरी कोठी उसकी भयानक आवाज से गूंजने लगी थी ।हालांकि उसने भी नए पिशाच को काफी टक्कर दिया लेकिन उसकी एक न चली ।उधर भैरव और कालीचरण बाबा लगातार मंत्र पढ़ते रहे ।दुर्जन थक हारकर चिल्ला उठा और बोला _ अब मैं हार मानता हूं ।अब मुझे छोड़ दो ।तुम लोग जो कहोगे मैं के करूंगा ।
भैरव ने अपने पिशाच से कहा _ छोड़ दो और पकड़ कर इधर लाकर बैठाओ।तुम वही रहना क्योंकि ये बहुत धोखेबाज है ।इसका कोई भरोसा नहीं है।
इसके बाद कालीचरण बाबा ने दुर्जन से कहा _ अगर तुम पहले ही मेरी बात मान लेते तो तुम्हारी इतनी दुर्गति नही होती ।

अब चुपचाप मेरी बात सुनो और जो कहता हु करो।
तुमको अब इस प्रेत योनी से मुक्त होना है और इस कोठी को हमेशा के लिए छोड़ देना है क्या तुम तैयार हो ।
ठीक है बाबा मैं तैयार हूं।
तुम्हारे बेटे की शादी प्रभा से होगी क्या तुम्हे कोई ऐतराज है।
जी नहीं बाबा लेकिन मेरी एक शर्त है ।
बाबा ने पूछा शर्त कैसी शर्त।
मेरा सारा धन इन चारो ने कही छिपा दिया है वो मुझे दिलवा दीजिए मैं आपकी हर बात मानूंगा।
उसकी शर्त सुनकर बाबा जोर जोर से हंसने लगे।
वाह दुर्जन मरकर भी तुम्हारा धन से मोह नहीं गया लेकिन अगर कही छिपाया भी है तो अब लेकर क्या करोगे ।दुर्जन ने जिद करते हुए कहा।
बाबा ने उसकी पत्नी की आत्मा से पूछा क्या ये सही कह रहा है ।


अब चुपचाप मेरी बात सुनो और जो कहता हु करो।
तुमको अब इस प्रेत योनी से मुक्त होना है और इस कोठी को हमेशा के लिए छोड़ देना है क्या तुम तैयार हो ।
ठीक है बाबा मैं तैयार हूं।
तुम्हारे बेटे की शादी प्रभा से होगी क्या तुम्हे कोई ऐतराज है।
जी नहीं बाबा लेकिन मेरी एक शर्त है ।
बाबा ने पूछा शर्त कैसी शर्त।
मेरा सारा धन इन चारो ने कही छिपा दिया है वो मुझे दिलवा दीजिए मैं आपकी हर बात मानूंगा।
उसकी शर्त सुनकर बाबा जोर जोर से हंसने लगे।
वाह दुर्जन मरकर भी तुम्हारा धन से मोह नहीं गया लेकिन अगर कही छिपाया भी है तो अब लेकर क्या करोगे ।दुर्जन ने जिद करते हुए कहा।
बाबा ने उसकी पत्नी की आत्मा से पूछा क्या ये सही कह रहा है ।


जी बाबा सही कह रहे है।प्रभा ने इसे कुंआ के अंदर मिट्टी खोदकर वही गाड़ दिया है।जिसकी देखभाल इसकी छोटी बहन नैना करती थी ।वो सब इसकी पाप की कमाई है बाबा ।
उसके सोना चांदी मोती और कुछ हीरे है ।
प्रभा ने कहा _ लेकिन बाबा मैं उस उस धन को इतने सालो से इसलिए नही छिपाकर रखा था ताकि फिर इसे दे दे।
मुझे पता था ये पानी और मिट्टी के अंदर नहीं देख सकता इसलिए कुंआ में उसे छिपाया था।मैं अपने होने वाले  दूल्हा भानु को दूंगी और किसी को नहीं।
उस पाप की कमाई का क्या करोगी प्रभा दे दो इस दुष्ट आत्मा को ।उसकी मां की आत्मा ने कहा ।
लेकिन प्रभा तैयार नहीं हुई तब बाबा ने कहा _ ठीक है इस धन का चार हिस्सा होगा ।
पहला दुर्जन,दूसरा भानु , तीसरा तुम्हारा और चौथा हिस्सा रामजी का होगा क्योंकि अब ये कोठी इनकी है ।
बोलो तैयार हो ।
प्रभा ने कहा _ ठीक है बाबा जब आप कह रहे है तो मैं तैयार हूं ।

 ठीक है तुम चारो आत्माओं जाओ और अभी उस धन को कुंआ से निकालकर ले आओ उसका बंटवारा अभी हो जायेगा ।
चारो तुरंत वहा से गायब हो गई।और पल भर में चार सोने का घड़ा लेकर आ गई।
बाबा ने कहा _ ये तो पहले ही चार हिस्सा है फिर भी इसका मुंह खोलो और सबको जमीन पर गिरा दो ।
इन चारो ने तुरंत उसका मुंह खोलकर उसका धन जमीन पर गिरा दिया।
काफी सारे  सोना चांदी के गहने ,सिक्के,मोती और कुछ हीरे जमा हो गए।
बाबा ने अपने चेलों से कहा इन सबका चार हिस्सा कर दो।दोनो ने चार हिस्सा कर दिया ।
बाबा ने भानु को अपने पास बुलाया और धीरे से उसके कान में कहा _ देखो ये पाप का धन फलेगा नही इसलिए इनसे धर्म कर्म का काम करना।स्कूल कॉलेज या हॉस्पिटल बनवा देना ताकि गरीबों को लाभ मिलता रहे ।
उसने कहा ठीक है बाबा । जैसा अपने कहा वैसा ही होगा ।और सुनो बाबा ने कहा  _ भले ही चार हिस्सा हो रहा है लेकिन तीन हिस्सा तुमको ही मिलेगा।तुम्हारे पिता और प्रभा का मिलाकर ।इसलिए उन तीन हिस्सो को भी दो भाग कर एक भाग राम जी को दे देना।
ठीक है बाबा ।
बाबा ने राम जी को भी बुलाकर उसके कान में सब समझा दिया ।उसने भी हामी भर दिया ।
तभी भैरव ने कालीचरण बाबा के कान में कुछ कहा ।बाबा ने कहा ठीक है ।
फिर बाबा ने _ दुर्जन ने कहा _ ये देखो दुर्जन तुम्हारा हिस्सा ले लो । बाबा ने अपने चेले से कहा _ इसका एक हिस्सा दुर्जन के पास रख दो सोने के घड़ा के साथ।
दुर्जन अपने धन का हिस्सा पाकर बहुत खुश हुआ ।
फिर बाबा ने प्रभा की मां की आत्मा को अपने पास बुलाया और धीरे से कान में कहा _ तुम जल्दी से जाओ और दुर्जन की खोपड़ी या कोई हड्डी ढूंढ कर छिपाकर लाओ और बिना किसी के दिखाए मुझे दे दो ।
वो तुरंत गायब हो गई ।थोड़ी ही देर में वो एक खोपड़ी अपने आंचल में छिपाकर लाई और बाबा को धीरे से दे दी ।
भैरव ने जोर जोर से मंत्र पढ़ना शुरू किया।यह मंत्र किसी के अंतिम संस्कार के समय उसकी आत्मा की मुक्ति के लिए पढ़ा जाता है । भैरव का मंत्र पूरा होते ही बाबा ने स्वाहा कहते हुए सर्जन की खोपड़ी को हवन कुंड में फेंक दिया और ढेर सारा घी डाल दिया।खोपड़ी आग में जलते ही दुर्जन छटपटाने लगा और बोला मेरे साथ धोखा हुआ है।
बाबा ने कहा _ कोई धोखा नही हुआ है।हम सबको पता था तुम हम सब को धोखा देने वाले थे अपना धन लेकर भागने वाले थे और फिर इस कोठी में आकर सबको परेशान करने वाले थे।
इसलिए जैसे जो तैसा हुआ ।
खोपड़ी जलते ही दुर्जन हवा बनकर आसमान की ओर चला गया।सबने बड़ी राहत की सांस लिया ।
बाबा ने भानु ,राम जी और मंगल राम से कहा _ तुम तीनो को जैसा कहा है वैसा ही करना ।
और राम जी तुम याहा दो चार गाय भी पाल लेना क्योंकि गाय के गोबर और मूत्र से घर पवित्र होता है।रोज गाय का गोबर रसोई घर में भी रख दीया करना
 ।साथ में इस कोठी में अभी चहल पहल रहे इसके लिए कोई न कोई अनुष्ठान कराते रहना ताकी तरह तरह के लोगो की भीड़ भाड़ से यहां सकारात्मक उर्जा बढ़ती रहे ।
 प्रभा तुम विवाह के दो साल बाद मुक्त हो जाओगी।बाकी तीनो विवाह के दूसरे दिन ही मुक्त होगी ।
सबके कहा ठीक है बाबा।आपकी हमारी है हम सब ।
मेरा नही राम जी का अभार करो सब जिसने इतना कष्ट सहकर यह सब करवाया और तुम सब भी प्रेत योनी से मुक्त हो रही हो।वैसे अपने कर्मो के हिसाब से सबको अपना फल भोगना पड़ता है।तुम लोगो को इतने दिन अकाल मृत्यु से मृत्य योनी में भटकना लिखा था इसलिए भोगा ।अब समय पूरा हो गया तो भगवान ने रामजी को माध्यम  बनाकर भेज दिया ।इनसे पहले कोई नही टिक पाया था।
इसलिए अब ये कोठी भी गुलजार हो जायेगी ।
अब हमलोग चलते है बाबा ने कहा ठीक फिर उन आत्माओं से पूछा _ अब तुम लोग रामजी और उनके परिवार को तंग तो नही करोगी । उनकी बाते सुनकर तीनो हंसने लगी ।
नही बाबा भला हम लोग इनको क्यों तंग करेंगी।
नैना ने राम जी की पत्नी से कहा _ आंटी मैं ही आपके साथ रहती थी अपनी मां के कहने पर ।ताकि आपको दुर्जन कोई कष्ट न पहुंचा दे।
राम जी की पत्नी ने नैना का गाल चूम लिया और कहा बड़ी प्यारी बेटी है ।अगले जन्म में अपनी दीदी के कोख से जन्म लेना ताकि मैं भी जब मौका मिलेगा तुमको अपनी गोद में खिला सकूं ।
राम जी ने भैरव नाथ और कालीचरण बाबा को दान दक्षिणा देकर और पूरे परिवार सहित सबका आशीर्वाद लेकर बिदा कर दिया ।
तब तक सुबह हो गई ।जाते जाते बाबा ने राम जी भानु और मंगल राम जबतक सारा काम खत्म नही हो जाता तब तक यही रहेंगे ।इनके रहने और भोजन आदि की व्यवस्था कर देना ।
ठीक है बाबा आप चिंता न करे ।
सबके जाने के बाद राम जी सभी महिला आत्माओं से कहा _ अब आप लोग अपने अपने कमरे में जाकर आराम करे । अबसे अपने इस रूप में सबके सामने मत आना ।गुप्त रूप से रहना वरना किसी ने देख लिया और पहचान लिया तो डर जायेंगे।
जब भी कोई जरूरत पड़े मेरी पत्नी को बोल देना ।बाकी कामों में अगर दिल करे हमारी मदद कर देना ।
लीलावती ने कहा _ राम जी आप बिल्कुल चिंता न करे।
अकेले में प्रभा भानु के गले से लिपट कर रोने लगी ।भानु भी  रोने लगा । अब रोने से क्या फायदा प्रभा जो होना था वो तो हो गया।फिर भी हमारा तुम्हारा दो साल का साथ मिला है।
यही बहुत है भानु ने कहा।
शादी के बाद हम लोग एक अलग से घर बनायेंगे और वही रहेंगे । प्रभा ने कहा ।


दो साल में प्रभा के दो बच्चे हुए।दो लड़कियां हुई।पहली बिल्कुल उसकी छोटी बहन नैना कैसी थी ।दूसरी की नाक उसके जैसी सुंदर तोते जैसी नुकीली ,मुंह उसके पति भानु जैसा और आवाज उसकी सास जैसी । चाल उसकी मां जैसी।
देखकर भानु और प्रभा दंग रह गए।
राम जी की कोठी की रौनक लौट आई थी ।पूरा परिवार बड़े हंसी खुशी के साथ वहा रहने लगा था।
मोहल्ले वाले भी वहा निडर होकर आने जाने लगे थे।
लेकिन सबको बड़ा आश्चर्य हुआ आज तक जिस कोठी में कोई नही टिक सका।राम जी और उनका परिवार कैसे बस गया ।

समाप्त 

 लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो,झारखंड
Mo.9955509286

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2 Comments

Punam verma

06-Nov-2023 08:46 AM

Very nice👍

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Varsha_Upadhyay

05-Nov-2023 10:01 PM

Nice 👍🏼

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